भगवद् गीता का दिव्य उद्देश्य
- Sanjeev Srivastava
- 3 फ़र॰
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अपडेट करने की तारीख: 6 फ़र॰

महाभारत की कथा केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि एक दिव्य लीला है। यह सम्पूर्ण महाकाव्य उन घटनाओं और परिस्थितियों का वर्णन है, जिनके माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण (नारायण) ने अपने प्रिय भक्त और मित्र अर्जुन (नर) को अमर ज्ञान प्रदान करने का उद्देश्य पूर्ण किया।
द्वापर युग के अंत में, जब अधर्म अपने चरम पर और धर्म संकट में था, तब ईश्वर ने अपनी लीला आरंभ की। महाभारत का युद्ध केवल पांडवों और कौरवों के बीच सत्ता संघर्ष नहीं था; यह उस परम ज्ञान की ओर एक यात्रा थी, जो मानवता के लिए सदैव के लिए अमूल्य मार्गदर्शक बनेगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से ऐसे संयोग और परिस्थितियां उत्पन्न कीं, जिन्होंने अर्जुन को उस क्षण तक पहुँचाया, जब वह अपने कर्तव्य और धर्म को लेकर भ्रमित हो गया। यह भ्रम ही वह अवसर बना, जिसमें श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता के रूप में शाश्वत सत्य और आत्मज्ञान का उपदेश दिया।
यह दिव्य संवाद केवल एक शिष्य और गुरु के बीच नहीं था, यह नर और नारायण का अद्वितीय मिलन था। भगवद्गीता की प्रत्येक पंक्ति, प्रत्येक श्लोक, उस ईश्वर की वाणी है, जो अपने भक्त को उसकी आत्मा के सत्य का साक्षात्कार कराने के लिए प्रेरित करता है।
इस प्रकार, महाभारत की संपूर्ण घटनाएं केवल एक पृष्ठभूमि थीं—एक महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए। वह उद्देश्य था भगवद्गीता के अमर ज्ञान का प्राकट्य, जो मनुष्य को जीवन, कर्तव्य और आत्मा के शाश्वत सत्य का मार्ग दिखाता है।
अब प्रस्तुत है उस महान ग्रंथ का आरंभिक श्लोक, जो इस अमर संवाद की शुरुआत करता है।
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